शाम मे नशा, मन मे शरारत है
दिल मे तड़प, उमंगो मे हिमाकत है
होटो मे प्यास, आँखों मे इजाजत है
जिव्हा मे मदिरा, तन मे हरारत है
बदन मे तनाव, यौवन मे कसावट है
उरोजो मे उठान, योनी मे तरावट है
बारिश की बुँदे, जिस्मों को भिगावत है
भीगा वस्त्र, सुंदर रूप को दिखावत है
आँखों का तीर, गोरी को निहारत है
हाथों का जाल, वक्क्षो को छिपावत है
प्रेमी का हाथ, कूल्हों को सहलावत है
यौवन कलश, सीने मे छुपावत है
अधरों की मदिरा, पीने को सर झुकावत है
अधरों से अधरों का मिलन, सांसों को महकता है
जिव्हा स्पर्श, प्रेम मे वासना भर जाता है
पंख चीर मदिरा सागर, को मथ उफान उठाता है
मृदु अमृत, प्रेमी की प्यास बुझाता है
वस्त्र भार बन, तन से निकल जाता है
निवस्त्र यौवन, कामेन्द्रियाँ विचलित कर जाता है
चुचियों का गहरा घेरा, अधरों को ललचाता है
हो व्याकुल प्रेमी, बच्चा बन जाता है
स्तन पीता, चूचुकों को चुभलाता है
लिंग देख, योनी प्यारी, इठलाता है
अकड़-अकड़ के, योनी को रिझाता है
पा निमंत्रण, योनी मुस्कराती है
रह-रह के अपना, मधु बहाती है
होटो मे प्यास, जीभ मे तड़प भर जाती है
योनी रस को पीने, छत्ते मे घुस जाती है
दे-दे कर सलामी, लिंग आंसू बहाता है
कोमल अधरों को, लिंग पे प्यार आता है
भर मुंह मे लिंग, जिव्हा सत्कार करती है
उपर नीचे लिंग की, चूसा चाटी करती है
मस्त हो लिंग, अमृत द्वार से निकल आता है
योनी मिलन को, बदन पे छा जाता है
हाथों का बांध, जिस्मों पे जकड़ जाता है
लिंग योनी मे, धीरे-धीरे समा जाता है
होटो से अधरों का, मिलन हो जाता है
हाथ चुचियों को, दबाता सहलाता है
स्त्री का पुरुष से, काम युद्घ छिड़ जाता है
काम-रति नृत्य, शुरू हो जाता है
लिंग योनी पे घर्षण से प्रहार किये जाता है
हर प्रहार पे योनी मुख खुल-खुल जाता है
काम-रस रिसता, लिंग नहलाता जाता है
साँसों मे तुफान,
आवेगों मे उफान,
अंगों मे भूचाल,
आहो मे चीख भर जाता है
वासना का ज्वार कुछ पलों में बह जाता है
सृष्टि का प्रकृति से मिलन पूर्ण हो जाता है
एक नये पौधे का बीज प्रकृति को दे जाता है