प्रेम का बहकना

वो ऐसे गुजरे पास से हमारे, हमने खुद को खोते देखा है
दिल को पकड़ना चाहा हमने, नजरों को जूझते देखा है
स्वांस लेने की कोशिश की हमने, हवाओं को पीछा करते देखा है
आग लगी मन में, जुल्फों में बादलों को घुमड़ते देखा है
होश काबू कैसे करू, आँखों के महखाने में पीते देखा है
धीरज मेरा छूट रहा, हाथों को आवारगी करते देखा है
शांत मन मेरा निश्छल, पदचिन्हों पे चलते देखा है
ऐ हुस्न क्यों तड़पाये मन को, तेरा होने को दिल करता है

दर्दे जज्बात हुस्ने आबाद

ये हुस्न ये अदा एक गजब नजारा है
कहे क्या दम देखने वालो का निकले जा रहा है
दिल से पूछो छुरियो के निशान छोड़ जाता है
खुद बनाते नहीं अल्फाज निकल जाते है
हसिनाओ के हुस्न की तारीफ में
बिन पूछे गुस्ताखी कर जाते है
दिल का क्या करे वो ताकता रह जाता है
जुबा पे कंट्रोल कर लिया जज्बात में बह के शब्द निकल ही जाता है
कितना भी करो कंट्रोल धरा रह जाता है
वो हुस्न ही क्या जिसको देख कर कविता न निकले
शब्दों को लिखना आसान हो जाता है
जब कोई खूबसूरत चेहरा अपनी शह छोड़ जाता है

माँ का दिल

एक बच्चा संसार में आता है
करोड़ों बुराई पाकर डर जाता है
डर कर बच्चा जोर से चिल्लाता है
चीख सुन माँ सहम जाती है
पल भर सीने से लगा छुपाती है
भुख में बच्चा फिर रोता है
माँ को पल में समझ आ जाता है
जिस दुनिया के लिए पल्लू नहीं सरका,
बच्चे की खातिर, पूरा स्तन निर्वस्त्र हो जाता है
तब पहला दूध पी पाता है
घुटरुन चलता माँ की सीने पे,
लोट लगाता हाथो में, हर अंग हाथो से सजाती है
कमर पकढ़ चलना सिखाती,
हाथ पकढ़ खाना सिखाती,
कलम पकढ़ लिखना सिखाती है
एक-एक जूठी हरकत में, लड़ कर पापा से बचाती है
छोटी सी बीमारी पे, रात भर जाग आँसू बहाती है
खुद तिल-तिल कर मर कर,
बच्चे को इन्सान बनती है
खुद भूखी हो कर भी उसको पहले खिलाती है
चाहे वो कितना भी तंग करे,
ख़ुशी-ख़ुशी हँसके सब सह जाती है
फिर तू मुर्ख ह्रदय हीनं इन्सान,
देवी को छोड़ बाहर चला जाता है
बीवी में हो मस्त, माँ को भूल जाता है
गलती से भी कोई सूचना छोटी सी छींक की भी,
माँ को मिल जाती है
तड़प उठता है दिल आत्मा दुखी हो जाती है
फिर भी माँ की याद में, कोई औलाद वापस नहीं आती है
माँ ने बच्चे को जोड़ा, याद में खुद टूटती चली जाती है

सावन का त्यौहार

आयो रे आयो रे, घनघोर सावन आयो रे
रिमझिम बूंदों का सागर, तपती धरा की प्यास बुझाने आयो रे
झुलसी कलियों में नव संचार, पुष्पों की मुस्कान खिलाने आयो रे
माटी की सुगंध, भवरों का गुंजन, हर शाख पे नूतन ले आयो रे
कल-कल, चल-चल करती बुँदे, नदियों का कोलाहल ले आयो रे
नृत्य में लय, सुर में ताल, मृदंग बजाता आयो रे
कवियों में सृजन, संगीत में नव गीत सजाने आयो रे
योवन में तरंग, प्रेम में सतरंग, उमंगों में उल्लास ले आयो रे
चेतन मन में हर्षोल्लास, चंचल चितवन में मधु पराग भरने आयो रे
मृत जीवन के कण-कण में, प्राण रूपी अमृत भरने आयो रे
बन प्रेमिका सावन की, झुमो नाचो गाओ रे
हर बूंद पे गीत सजाओ रे
सावन की रिमझिम बूंदों का भी एक त्यौहार मनाओ रे
आयो रे आयो रे, घनघोर सावन आयो रे

प्रेम सम्भोग

शाम मे नशा, मन मे शरारत है
दिल मे तड़प, उमंगो मे हिमाकत है
होटो मे प्यास, आँखों मे इजाजत है
जिव्हा मे मदिरा, तन मे हरारत है
बदन मे तनाव, यौवन मे कसावट है
उरोजो मे उठान, योनी मे तरावट है
बारिश की बुँदे, जिस्मों को भिगावत है
भीगा वस्त्र, सुंदर रूप को दिखावत है
आँखों का तीर, गोरी को निहारत है
हाथों का जाल, वक्क्षो को छिपावत है
प्रेमी का हाथ, कूल्हों को सहलावत है
यौवन कलश, सीने मे छुपावत है
अधरों की मदिरा, पीने को सर झुकावत है
अधरों से अधरों का मिलन, सांसों को महकता है
जिव्हा स्पर्श, प्रेम मे वासना भर जाता है
पंख चीर मदिरा सागर, को मथ उफान उठाता है
मृदु अमृत, प्रेमी की प्यास बुझाता है
वस्त्र भार बन, तन से निकल जाता है
निवस्त्र यौवन, कामेन्द्रियाँ विचलित कर जाता है
चुचियों का गहरा घेरा, अधरों को ललचाता है
हो व्याकुल प्रेमी, बच्चा बन जाता है
स्तन पीता, चूचुकों को चुभलाता है
लिंग देख, योनी प्यारी, इठलाता है
अकड़-अकड़ के, योनी को रिझाता है
पा निमंत्रण, योनी मुस्कराती है
रह-रह के अपना, मधु बहाती है
होटो मे प्यास, जीभ मे तड़प भर जाती है
योनी रस को पीने, छत्ते मे घुस जाती है
दे-दे कर सलामी, लिंग आंसू बहाता है
कोमल अधरों को, लिंग पे प्यार आता है
भर मुंह मे लिंग, जिव्हा सत्कार करती है
उपर नीचे लिंग की, चूसा चाटी करती है
मस्त हो लिंग, अमृत द्वार से निकल आता है
योनी मिलन को, बदन पे छा जाता है
हाथों का बांध, जिस्मों पे जकड़ जाता है
लिंग योनी मे, धीरे-धीरे समा जाता है
होटो से अधरों का, मिलन हो जाता है
हाथ चुचियों को, दबाता सहलाता है
स्त्री का पुरुष से, काम युद्घ छिड़ जाता है
काम-रति नृत्य, शुरू हो जाता है
लिंग योनी पे घर्षण से प्रहार किये जाता है
हर प्रहार पे योनी मुख खुल-खुल जाता है
काम-रस रिसता, लिंग नहलाता जाता है
साँसों मे तुफान,
आवेगों मे उफान,
अंगों मे भूचाल,
आहो मे चीख भर जाता है
वासना का ज्वार कुछ पलों में बह जाता है
सृष्टि का प्रकृति से मिलन पूर्ण हो जाता है
एक नये पौधे का बीज प्रकृति को दे जाता है

मनुष्य,काम,प्रेम और आत्मा

प्रकृति ने हर जीव को काम दिया है
ईश्वर ने मनुष्य को काम के साथ प्रेम दिया है
हे निष्ठुर इन्सान प्रेम के साथ सम्भोग कर
तेरा जीवन रस से भर जायेगा
रोम-रोम प्रफुल्लित हो जायेगा
अन्यथा देह शांत हो जायेगी
आत्मा बिन प्रेम, घुट के रह जायेगी
आत्म घुटन से जीवन मशीन बन जायेगा
शारीर भी सम्भोग का साथ नहीं दे पायेगा
देह संचालन के लिए भोजन जरूरी है
वासना शांति के लिए सम्भोग जरुरी है
आत्म संतुष्टि के लिए प्रेम जरूरी है

वक्क्षो की मादकता

वक्क्षो पे सर रखने को दिल करता है
चोटी पे मिटने को दिल करता है
ऊँचाई से पिघलने को दिल करता है
घाटी मे डूबने को दिल करता है
स्वछंद कमलो को छु लेने को दिल करता है
प्रेम भरे कलशो मे सागर-मंथन को दिल करता है
प्यासे होटो मे भर लेने को दिल करता है
भँवरा बन, कैद होने को दिल करता है